जीवन परिचय
डॉक्टर विक्रम अम्बालाल साराभाई का जन्म 12 अगस्त 1919 को गुजरात राज्य के प्रमुख औधोगिक एवं विशाल नगर अहमदाबाद में एक प्रतिष्ठित उद्योगपति के परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम अम्बालाल और माता जी का नाम सरला देवी था. वे आठ भाई और बहन थे. विक्रम साराभाई बाल्यकाल से ही प्रतिभावान थे.
जब उनकी आयु मात्र दो वर्ष थी, श्री रविन्द्र नाथ टैगोर ने भविष्यवाणी की थी की यह बालक बड़ा हो कर बहुत यश प्राप्त करेगा. उनकी यह भविष्यवाणी वास्तव में सत्य सिद्ध हुई और विक्रम साराभाई ने यथार्थतः एक महान और यशस्वी वैज्ञानिक के रूप में सम्पूर्ण विश्व में अपने ज्ञान और प्रतिभा का प्रकाश फैला कर कीर्तिमान स्थापित किया. विश्व में वे सदैव कॉस्मिक किरणों और परमाणु शक्ति अनुशंधान के लिए स्मरण किये जाते रहेंगे.
शिक्षा एवंम उनके द्वारा किये गए खोज
विक्रम साराभाई के अबोध मन में बचपन से ही कीर्ति प्राप्त करने की लालसा और महत्वकांक्षा विधमान थी. 5-6 वर्ष की आयु में उन्हें एक बार अपने परिवार के साथ शिमला जाने का मौका प्राप्त हुआ. जब उन्होंने देखा की उनके पिता के नाम से ढेर सारे पत्र आते हैं तो उनके मन में यह इच्छा जागृत हुई की उनके नाम से भी इसी प्रकार अनेक पत्र आयें. इस इच्छा से प्रेरित हो कर बालक विक्रम ने कुछ खाली लिफाफों पर टिकेट चिपकायें और उनपर अपना नाम तथा पता लिख कर डाकघर में डाल दिए. अब विक्रम के नाम से भी पत्र आने लगे तो इससे उनके पिता के मन में इसका कारण जानने की इच्छा उत्पन्न हुई. पिता द्वारा पूछने पर विक्रम ने बताया की वहीँ अपने नाम से पत्र लिख कर डाल आते थे. विक्रम को बचपन से ही साहसिक कार्य पसंद थे, जब उनकी आयु आठ वर्ष थी तो वे साइकिल पर भाति-भाति की कलाबाजियां दिखा कर लोगो को आश्चर्यचकित कर देते थे.
विक्रम के प्रिय विषय गणित और विज्ञान थे. उनकी भौतिक शास्त्र में विशेष अभिरुचि थी. उन्होंने सन् 1935 में मेट्रिक की परीक्षा पास की. सन् 1935-1937 में उन्होंने ने गुजरात कॉलेज अहमदाबाद में इंटरमीडिएट तक अध्ययन किया तथा सन् 1936 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय इंग्लैंड में अध्ययन प्रारंभ किया. उन्होंने 20 वर्ष की आयु में कैंब्रिज विश्वविद्यालय लन्दन से भौतिकी में त्रिपोस परीक्षा पास कर ली थी.
सन् 1940 में उन्होंने गणित और भौतिक शास्त्र में बी ए की परीक्षा पास की. द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ में वे भारत लौट आये. यहाँ एक ओर उनका सम्पर्क सर CV रमन और डॉक्टर होमी जहाँगीर भाभा जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों से हुआ. वहीँ दूसरी ओर राष्ट्रिय स्वतंत्रता आन्दोलन में भी उन्हें एक नविन चेतना प्रदान की. उन्होंने अंतरिक्ष की गहराईयों से आने वाली रहस्यमयी कॉस्मिक किरणों पर आनुसंधान कर के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से सन् 1947 में पी.एच.डी. की उपाधि अर्जित की थी. ब्रह्माण्ड तथा सौरमंडल के कई जटिल प्रश्नों का प्रायोगिक हल निकलने का श्रेय डॉक्टर साराभाई को प्राप्त है. यह उन्ही का सुझाव था की कॉस्मिक किरणों पर प्रयोग करने के लिए हिमालय की ऊँची चोटिया बहुत अनुकूल सिद्ध होगी. इसी के फलस्वरुप भारत सरकार ने अंत में गुलमर्ग में एक वैज्ञानिक उपकरणों से पूर्णतया सुसज्जित प्रयोगशाला स्थापित की.
डॉ.साराभाई ने अपनी निजी प्रयासों और अनूठी निष्ठा से कई अन्य महत्वपूर्ण संस्थाओं को प्रारंभ किया. जैसे- भौतिक अनुशंधान प्रयोगशाला (अहमदाबाद) की सन 1947 में स्थापना, जिससे वे आजन्म सम्बद्ध रहे. इसी प्रकार अहमदाबाद में ही टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज रिसर्च एसोसिएशन की आधारशिला रखी गयी. जिसमें वस्त्र उद्योग में तकनिकी समस्यायों का हल देश में निकलने का महत्वपूर्ण कार्य प्रारंभ हुआ.
भौतिक अनुशंधान प्रयोगशाला अहमदाबाद में ब्रह्माण्ड किरण के संशोधन के उपरान्त परमाणु शक्ति, कंप्यूटर तकनिकी, अन्तरिक्षविकिरण, सूर्यग्रह तारा, प्लाज्मा भौतिक, भौतिकी और खगोल पर वे कार्यरत रहे. सन 1974 में अन्तरिक्ष में छोड़े गए भारत के उपग्रह के काफी रचना भी वहां हुई थी.
डॉ. साराभाई सन 1961 में परमाणु ऊर्जा आयोग के सदस्य बने. सन 1966 में डॉक्टर होमी जहाँगीर भाभा की मृत्यु के बाद परमाणु ऊर्जा संस्थाओं का भार भी युवा वैज्ञानिक डॉक्टर साराभाई को ही सौपा गया. डॉक्टर साराभाई ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में देश को एक नयी दिशा प्रदान की तथा इसके शांतिपूर्ण उपयोगों के लिए व्यापक प्रयास प्रारंभ किया. साराभाई ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधानकेन्द्र का गठन किया और वे इसके प्रथम अध्यक्ष बने. जिसके परिणाम स्वरुप आज आकाश में भारत में ही बने उपग्रह तैर रहे हैं. जिनके माध्यम से हमारे विशाल देश में दूरसंचार, दूरदर्शन और मौसम विज्ञान में इतनी आश्चर्यजनक प्रगति हुई.
डॉक्टर विक्रम साराभाई ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत देश में विज्ञान की प्रगति और विकास के लिए समर्पित कर दिया था. वे आजन्म एक कर्मयोगी की भांति सरस्वती की साधना में संलग्न रहे. वे 21 दिसम्बर, 1971 को त्रिवेन्द्रम के राकेट लांचिंग स्टेशन, थुम्बा में कार्य के निरिक्षण हेतु गए थे. वहीँ एक होटल में हृदयगति रुक जाने से डॉक्टर साराभाई का असामयिक मृत्यु हो गया. उस समय उनकी आयु 52 वर्ष की थी.
डॉक्टर विक्रम साराभाई को सौन्दर्य से अत्यंत प्रेम था. वे समाज और संसार से विलग रहकर एकांत में अनुसंधान में रत रहने वाले वैज्ञानिक नहीं थे. वे अपने परिवार के कार्यों में निरंतर पूर्ण सहयोग देते रहे. उनकी पत्नी मृणालिनी स्वामी नाथन साराभाई भारत विख्यात शास्त्रीय नर्तकी हैं. उनका विवाह सन् 1942 में हुआ था.
विक्रम साराभाई के एक पुत्र और एक पुत्री है. उनके पुत्र का नाम कार्तिकेय है. उनकी पुत्री का नाम मल्लिका साराभाई है, वह एक सुप्रसिद्ध नर्तकी और फिल्म अभिनेत्री है.
डॉक्टर साराभाई केवल उच्च कोटि के वैज्ञानिक ही नही थे, अपितु अत्यंत व्यस्त होते हुए भी उन्होंने कला, शिक्षा, समाज आदि में भी बहुत रूचि ली. जनसाधारण में विज्ञान के प्रति रूचि उत्पन्न करने के लिए उन्होंने अहमदाबाद में ही लोक विज्ञानं केंद्र तथा नेहरु विकास संस्थान स्थापित किये.
भारत के विकास में उनके उत्कृष्ट सहयोग के लिए डॉक्टर विक्रम साराभाई को कई राष्ट्रिय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किये गए. सन् 1962 में डॉक्टर शांतिस्वरूप भटनागर मेमोरियल अवार्ड, सन् 1966 में पद्मभूषण तथा मरणोपरांत पद्मविभूषण से उन्हें अलंकृत किया गया. निःशस्त्रीकरण से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में भी वे भारत के प्रतिनिधि रहे. डॉक्टर साराभाई सन् 1966 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ़ साइंटिफिक यूनियन के सदस्य, सन् 1968 में संयुक्त राष्ट्र संघ में यूनेस्को के विज्ञान विभाग के अध्यक्ष, सन् 1970 में इंडियन जूलॉजिकल यूनियन के प्रमुख, सन् 1970 में वियना शान्ति अंतर्राष्ट्रीय अणु मंच की चौदहवी परिषद् के प्रमुख, सन् 1971 में संयुक्त राष्ट्रसंघ परिषद् के उपाध्यक्ष तथा बाद में विज्ञान विभाग के अध्यक्ष रहे.
उनकी स्मृति में विज्ञान के विविध क्षेत्रों- राकेट, उपग्रह, संचार, मौसम विज्ञान, खगोल भौतिकी, उपग्रह, सुदूर संवेदन, खगोल विज्ञान, अन्तरिक्ष आयुर्विज्ञान, अन्तरिक्ष उपयोग, हवाई सर्वेक्षण, भू-गणित तथा अन्तरिक्ष इंजीनियरिंग- में विशिष्ट अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिको और लेखकों को डॉक्टर विक्रम साराभाई स्मारक पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं.
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