तेनालीराम की तीन कहानियां- Story Of Tenali ram
मरियल घोड़ा
राजा कृष्णदेव और चतुर तेनाली अपने-अपने घोड़ों पर सवार होकर सैर के लिए निकले।
राजा का घोड़ा अरबी नस्ल का बढ़िया घोड़ा था। जिसकी कीमत भी काफी थी।
इधर तेनालीराम का घोड़ा एकदम मरियल-सी अवस्था का वह बड़ी ढीली ढाली चाल से चल रहा था। तेनालीराम अगर अपने इस घोड़े को बेचना चाहता, तो कोई उसकी 40 स्वर्ण मुद्राएं कीमत भी न लगाता। राजा कृष्णदेव ने तेनाली के घोड़े की ओर देखते हुए कहा, “कैसा मरियल-सा घोड़ा है तुम्हारा ! जो करतब मैं अपने घोड़े के साथ दिखा सकता हूं, क्या तुम अपने घोड़े के साथ भी वह करतब कर सकते हो ?”
“जो करतब मैं अपने घोड़े के साथ दिखा सकता हूं महाराज, वह आप अपने घोड़े के साथ कभी नहीं दिखा सकते। ”
“सौ-सौ स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लगाते हो ?” राजा कृष्णदेव ने कहा। चतुर तेनाली महाराज की शर्त से सहमत हो गया।
उस समय राजा कृष्णदेव और तेनाली तुंगभद्रा नदी पर बने नाव के पुल पर से गुजर रहे थे। उस समय बाढ़ आई हुई थी। पानी बहुत तेज गति से वह रहा था। और उसमें जगह-जगह भंवर भी दिखाई दे रही थी।
अचानक तेनाली अपने घोड़े पर से उतरा और उसने अपने मरियल से दिखने वाले घोड़े को पुल से नीचे तेज बहते पानी में धक्का दे दिया। फिर महाराज से बोला, “अब आप भी अपने घोड़े के साथ ऐसा करके दिखाइए।” तेनाली ने राजा से कहा।
राजा कृष्णदेव अपने कीमती और सुंदर घोड़े को पानी में धक्का देते हुए सकुचाये। फिर बोले, “ना बाबा ना मैं मान गया कि मैं अपने घोड़े के साथ वह करतब नहीं दिखा सकता, जो तुम दिखा सकते हो।
” राजा ने यह कहते हुए तेनाली को शर्त के मुताबिक सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दीं। “लेकिन तुम्हें वह विचित्र बात सूझी कैसे ?” राजा कृष्णदेव ने तेनाली से पूछा।
“महाराज, मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था कि बेकार और निकम्मे मित्र का यह लाभ होता है कि जब वह न रहे, तो कोई दुःख नहीं होता। और फिर मेरा घोड़ा भी चालीस-पचास स्वर्ण मुद्राओं से ज्यादा कीमत का नहीं था और मैंने आपसे शर्त में सौ स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त कर लीं।
तेनाली की चतुराई और समझभरा जवाब पाकर राजा कृष्णदेव मुस्कराते हुए बोले, “वाकई, तुम्हारी चतुराई और समझ का कोई ज्ञानी जवाब नहीं है। ”
- बुढ़ापे की मृत्यु
उसने उनकी वीरता के बारे में सुन रखा था। और यह भी कि राजा ने अपनी वीरता से कोडीवुड, कोंडपल्ली, श्रीरंगपत्तिनम, उदयगिरि, उमत्तूर और विश्वमुद्रम को जीत लिया है। आदिलशाह ने सोचा कि इन दो नगरों को बचाने का एक ही उपाय है कि राजा कृष्णदेव की सुनियोजित तरीके से हत्या करवा दी जाए।
उसने लालच देकर तेनालीराम के पुराने सहपाठी और उसके मामा के सम्बन्धी कनकराजू को इस काम के लिए अपनी ओर मिला लिया। जब कनकराजू अपने पुराने सहपाठी तेनालीराम के घर पहुंचा तो तेनालीराम ने उसका खुले दिल से स्वागत किया। उसकी खूब आवभगत की और अपने घर में उसे बाइज्जत ठहराया।
एक दिन किसी कार्यवश तेनालीराम बाहर गया हुआ था, तो कनकराजू ने राजा कृष्णदेव को तेनालीराम की तरफ से संदेश भेजा, “आप इसी समय मेरे घर आ जाएं तो आपको ऐसी अनोखी बात दिखाऊंगा जो आपने जीवन में नहीं देखी होंगी।”
यह संदेश पाकर राजा कृष्णदेव बिना किसी हथियार अपने अंगरक्षकों के सरदार के साथ तेनालीराम के घर पहुंच गए। तभी अचानक कनकराजू ने धारदार हथियार से उन पर घात लगाकर वार कर दिया। इससे पहले कि वह हथियार राजा कृष्णदेव को कोई क्षति पहुंचाता, राजा कृष्णदेव ने कनकराजू की वही कलाई पकड़ ली। उसी समय राजा के अंगरक्षकों का सरदार, जोकि बाहर खड़ा था, ने कनकराजू को पकड़ लिया और तलवार के एक ही वार से उसे ढेर कर दिया।
कानून के मुताबिक राजा को मारने की कोशिश करने वाले को जो व्यक्ति शरण देता था, उसे मृत्युदंड दिया जाता था। राजा ने तेनालीराम को मृत्युदंड की सजा सुना दी। लेकिन तेनाली ने राजा से दया की अपील की। तो राजा ने कहा, “मैं राज्य के नियम के विरुद्ध जाकर तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता। तुमने उस नीच व्यक्ति को अपने यहां पनाह दी फिर तुम कैसे मुझसे क्षमा की आशा कर सकते हो ? हां, इतना तो हो सकता है कि तुम्हें यह फैसला करने की स्वतंत्रता दी जाती है कि तुम्हें कैसी मृत्यु चाहिए।”
तभी तेनाली तपाक से बोला, “महाराज ! मुझे बुढ़ापे की मृत्यु चाहिए।”
सभी दरबारी उसकी इस समझदारी के कायल हो गए। तब राजा कृष्णदेव हंसकर बोले, “तुम बहुत ही चतुर हो तेनाली। आखिर इस बार भी बच ही निकले।”
- जनता का फैसला
राजा कृष्णदेव एक बार शिकार खेलने के लिए गए। तो जंगल में भटक गए उनके अंगरक्षक पीछे ही छूट गए थे। जब शाम हो गई तो उन्होंने अपना घोड़ा एक पेड़ से बांध दिया और वह रात नजदीक के एक गांव में बिताने का निश्चय कर लिया।
एक राहगीर का वेश धारण कर वह एक किसान के पास गए। उन्होंने उस किसान से कहा, “मैं बड़ी दूर से आया हूं और रास्ता भटक गया हूं। क्या आपके यहां रात गुजार सकता हूं ?” वह किसान बोला, “ओ क्यों नहीं जो रूखा-सूखा हम खाते हैं, वह
आप भी स्वीकार कर लीजिएगा। मगर ओढ़ने के लिए मेरे पास एक कंबल है। क्या उसमें आप यह रात काट सकेंगे ? ”
राजा कृष्णदेव ने सहमति में सिर हिला दिया। जब एक अकेले कंबल में नींद नहीं आई तो राजा ने सोचा क्यों न इस गांव का भ्रमण ही कर लिया जाए। जब राजा ने उस गांव में भ्रमण किया तो उन्होंने देखा कि उस गांव में भीषण गरीबी थी।
उन्होंने वहां के निवासियों से पूछा, “तुम लोग दरबार में जाकर फरियाद क्यों नहीं करते ?” “कैसे जाएं ? हमारे राजा तो हर समय चापलूसों से घिरे रहते हैं।
कोई हमें दरबार में प्रवेश ही नहीं करने देता।” एक किसान ने बताया। सुबह होते ही जैसे ही राजा अपने नगर में पहुंचे तो उन्होंने मंत्री और दूसरे अधिकारियों को अपने पास बुलाया और कहा, “हमें मालूम हुआ है, कि हमारे राज्य के गांवों की हालत ठीक नहीं है जबकि हम गांवों की भलाई के काम करने के लिए शाही खजाने से काफी धन खर्च कर चुके हैं।”
एक मंत्री ने जवाब दिया, “महाराज, आप द्वारा दिया सारा रुपया गांवों की भलाई में ही खर्च हुआ है आपसे किसी ने गलत शिकायत की है। ” फिर उन्होंने अपने सलाहकारों व मंत्रियों के जाने के बाद तेनालीराम को बुलवा लिया और कल की पूरी घटना उसे कह सुनाई।
तेनालीराम ने राजा से कहा, “महाराज ! प्रजा अगर आपके दरबार में नहीं आ सकती है तो आपको उनके दरबार में जाना चाहिए। उनके साथ जो अन्याय हुआ है, उसका फैसला उन्हीं के बीच जाकर कीजिए।”
फिर राजा ने दरबार में घोषणा की, “अब हम गांव-गांव का यह जानने के लिए दौरा करेंगे कि प्रजा किस हाल में जी रही है ?” यह सुनकर उनके कोषागार मंत्री ने कहा, “महाराज सब लोग खुशहाल हैं गांव का दौरा कर परेशान अलग से हो जायेंगे। ”
तेनालीराम बोला, “इन मंत्रीजी से ज्यादा प्रजा का भला चाहने वाला और कौन होगा ? यह जो कह रहे हैं, वह सत्य ही होगा। मगर आप भी तो उनके बीच जाकर प्रजा की खुशहाली देखिए । “नहीं ! हम खुद अपनी आंखों से अपने राज्य के गांवों का विकास देखना चाहते हैं। ”
फिर भी धूर्त्त मंत्री ने राजा को आसपास के गांव ही दिखाने चाहे, लेकिन राजा ने दूर-दराज के गांवों की ओर अपना घोड़ा मोड़ दिया। गांव के लोग राजा को सामने पाकर खुलकर अपनी समस्याओं से अवगत कराने लगे। मंत्री के काले कारनामों का सारा राज राजा के सामने खुल चुका था। अब वह सिर झुकाए खड़ा था।
राजा कृष्णदेव ने प्रजा के बीच में ही कहा, “प्रत्येक माह मैं आपके बीच उपस्थित हुआ करूंगा। और आपकी समस्याओं का मौके पर ही निदान किया करूंगा।” कोषगार मंत्री घूर घूरकर अब तेनाली की ओर देख रहा था, लेकिन चतुर तेनाली केवल मुस्करा रहा था।
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