अच्छा इंसान बनिए
आज के इस मशीनी युग में इंसानियत या मानवता बहुत कम दिखाई देती है। यदि दिखाई देती भी है तो वह अखबार में छपने या टीवी पर दिखाने की चीज हो गई है। मानवता पर बड़े-बड़े लोग भाषण देते हैं लेख लिखते हैं तथा सेमिनार करते हैं। लेकिन वास्तविक अर्थों में कितने लोग मानवता को सही सही समझते हैं? केवल थोड़े ही। जरूरी नहीं है कि मानवता पढ़े लिखे लोगों में ही पाई जाए। कई बार या अनपढ़ गवारओं एवं गरीबों में पढ़े लिखे एवं संपन्न लोगों से ज्यादा मिलती है।
जहां पढ़ लिखकर लोग शारीरिक श्रम से बचना चाहते हैं संपन्न होने पर दूसरों को मुसीबत में देख कर मुंह मोड़ लेते हैं तथा करो कि चोरी के नए-नए तरीके निकालते हैं वहीं कम पढ़ा लिखा अनपढ़ अथवा गवार गरीब आदमी किसी जाने पहचाने या अनजाने आदमी के भी काम आता है। किसी खेलने वाले या साइकिल रिक्शा वाले के दुर्घटनाग्रस्त होने पर समानता कौन उसकी सहायता करता है? उन्हीं जैसे मजदूरी करने वाले लोग। इसके विपरीत किसी चार पहिया धारी के साथ दुर्घटना होने पर भी यही लोग उसकी सहायता को आगे बढ़ते हैं। ऐसा क्यों होता है या हो रहा है? केवल संकीर्णता एवं इंसानियत की कमी की वजह से। अपना आराम और परेशानी को ध्यान में रखकर लोग आपातकाल में भी दूसरों की सहायता नहीं करते जबकि उस सहायता में बमुश्किल कुछ समय (कुछ मिनटों या कुछ घंटों) ही व्यय होता है। ऐसी मानसिकता वाले लोगों के सांप कोई आपातकाल आने पर यदि कोई उनकी सहायता ना करें तो बजाय स्वयं का पुनरावलोकन करने के वे जमाने को दोषी ठहराते हैं। कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में ऐसा नहीं है जो अपने आप को बुरा कहते हो। जबकि कबीर दास जी के अनुसार कटु सत्य यह है कि-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
आप अपने आप से पूछिए कि आप कैसे इंसान है? आपकी अंतरात्मा आपको क्या उत्तर देती है? उसके अनुसार अपना आत्म विश्लेषण करिए। और फिर भी स्थिति स्पष्ट ना हो या कोई गलतफहमी रहे तो निम्नांकित कसौटीयाें पर स्वयं को कसकर देखें:-
- क्या दूसरों को दुखी देखकर मैं भी दुखी होता हूं
- क्या किसी को कष्ट में देख कर मुझे भी कष्ट होता है
- किसी दुर्घटना के वक्त या पीड़ित आदमी की सहायता कर सकता हूं
- किसी को दुर्घटनाग्रस्त देख कर क्या पुलिस की पूछताछ या बगैर प्रतिफल के होने वाले कष्ट की वजह से आप उसकी सहायता से मुंह चुराते हैं
- किसी को कष्ट पहुंचने में क्या आपको कोई कष्ट होता है या नहीं यदि होता है तो कितना
- किसी का किसी भी प्रकार का नुकसान होते हुए क्या आप देख सकते हैं यदि आप के बस में वह नुकसान रोकना संभव है तो क्या आप उसे रोकते हैं
- किसी को परेशान करने तथा कष्ट पहुंचाने में आपको खुशी तो नहीं आता
- क्या आप की वजह से किसी को अनजाने अनचाहे पहुंचे कष्ट के लिए आपको खेद होता है
- क्या आप अपने कर्तव्यों के प्रति सजग है यदि है तो कितने कर्तव्य आप ईमानदारी से निभाते हैं
- क्या आप अपने छोटे से लाभ के लिए दूसरे का बड़ा नुकसान भी कर सकते हैं
ऊपर में लिखे गए कसौटीयों पर खुद को परखें तथा फिर निर्णय ले कि आप कैसे व्यक्ति हैं। एक अच्छे इंसान को दुनिया में कुछ कष्ट अवश्य हो सकते हैं लेकिन वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख कर व्यवहारिक सच्चाई को सामने रखकर मानवता अपनाएं तो उससे सुखी व अच्छा इंसान ढूंढना मुश्किल होगा।
इस दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति चाहे तो महान बन सकता है। लेकिन उसके लिए सबसे पहले उसे इंसान बनना पड़ेगा, वह भी अच्छा इंसान। भले ही हम महान ना बनना चाहे और ना हम में हुए खूबियां है जो महान बनने के लिए जरूरी होती है, लेकिन थोड़े से प्रयत्न से कोई भी अपने आप में निम्नांकित खूबियां उभार सकता है तथा स्वयं को अपनी नजरों में ऊंचा उठाकर मानसिक संतुष्टि तो अवश्य ही प्राप्त कर सकता है:
- दूसरों के दर्द को पहचानने की क्षमता अपने आप में विकसित करें।
- आपातकाल में भी अपना मानसिक संतुलन कायम रखें व लोगों की सहायता करने से बिल्कुल पीछे ना हटें।
- मन में दया सने और ईमानदारी के भाव कायम रखने का प्रयत्न करते रहे।
- दूसरों की भलाई के लिए यदि छोटे-मोटे हित त्याग ना पड़े तो उससे पीछे ना हट है।
- अपने सामाजिक नैतिक व अन्य दायित्वों का बोध रखें एवं उन्हें वहन भी करें।
- कोशिश करें कि आप की वजह से किसी को कष्ट न पहुंचे।
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