“आप अपने बच्चे को अपंग तो नहीं बना रहे”
रूस के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं उपन्यासकार लियो टॉलस्टॉय ने अपने निबंधों में आम आदमी की मानसिकता का विश्लेषण करते हुए कहा है कि लोग विलासिता को सुखी होने की कसौटी मानते हैं, जबकि वास्तविकता इससे विपरीत है। जिसकी श्रम के प्रति आस्था नहीं है, वह तरह-तरह के मनोशारीरिक रोगों की चपेट में आकर हर रोज लोगों के सामने और अपनी नजर में अपमानित होता है तथा तिल-तिल मरता है। इस बारे में टॉलस्टॉय ने एक उदाहरण के द्वारा बहुत ही बारीकी से समझाया हैं। जिसे मैं आज “अनमोलसोच डॉट इन” के माध्यम से आप सभी पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ।
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कोई किसी से बदला लेना चाहता था। इसलिए उसने दूसरे व्यक्ति के बच्चे का अपहरण कर लिया। वह उस बच्चे को लेकर अपने एक मित्र के पास गया। उसने अपने मन की बात अपने मित्र को बताई। उसके मित्र ने उसे आश्वासन दिया कि वह जैसा चाहता है, वैसा ही होगा। इसके लिए उसने जितने पैसों की मांग की, उसे दे दिए गए। निश्चिंत होकर वह बच्चे को अपने मित्र के पास छोड़कर चला गया।
कुछ बरस बीतने के बाद यह देखने के लिए कि उसका मित्र आखिर उसकी मंशा कैसे पूरी कर रहा है, वह अपने मित्र के पास पहुंचा। वहां पहुंचकर उसने जो देखा वह उसकी इच्छा के बिलकुल विपरीत था, क्योंकि उसके मित्र ने उस बच्चे को वह सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई हुई थीं, जो किसी राजकुमार को ही मिल पाती हैं। वह अपने मित्र पर बरस पड़ा। लेकिन जब उसके मित्र ने असलियत बताई, तो वह हैरान हो गया। उसने कभी भी ऐसा नहीं सोचा था। उसके मित्र ने उसे बताया ‘मित्र, सुविधाओं का जंग मनुष्य के अंग-अंग को निष्क्रिय कर देता है। जो परिश्रम कर सकता है, श्रम में विश्राम करने की युक्ति जान गया है; उसे विपरीत परिस्थितियां हिला नहीं पातीं, उसे कोई किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा सकता।
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‘मित्र, सुविधाओं ने इसे इतना अपंग बना दिया है कि यह सारी उम्र लोगों का गुलाम बनकर जीएगा, मौत के लिए तरसेगा यह। मैंने इससे ऐसा बदला लिया है, जैसा कोई किसी के साथ लेने की सोच भी नहीं सकता।’
टॉलस्टॉय ने बच्चों के अभिभावकों से फिर पूछा है कि वे देखें, कुछ ऐसा ही करके वे अपनी संतान को अपंग तो नहीं बना रहे।
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