आज लगभग 10 साल बाद मुझे अपने गाँव के पास में ही एक मेले में जाने का मौका मिला. अच्छा लगा पर दस साल पहले की तरह उस मेले में भीड़ नहीं थी. पहले की तुलना में काफी कम लोग आयें हुए थे.सोचे की मेले में इतने दिन बाद आयें है तो कुछ खा लेते हैं. एक बहुत ही पुरानी और नामी जलेबी के दुकान पर खाने बैठे. दुकान वालें ने एक कागज के पन्ने पर जलेबी खाने को दिया,जलेबी खाते खाते मेरी नजर उस कागज के टुकड़े पर पड़ी. जिसमें बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था
– खुदा ने हम सबको ख़ास बनाया……

जब पूरा अध्ययन किया तो अच्छा लगा. मुझे लगा की मुझे ये बात अपने पाठको, और मित्रों तक भी शेयर करना चाहिए तो मैंने anmolsoch.in पर लिख दिया.
आप जानते हैं की सबके हाथों की लकीरे एक-सी नहीं होती. इसीलिए यह भी कह सकते हैं की सबके कर्म एक दुसरे से भिन्न होते हैं.भाग्यवादी मान सकते हैं की हर इंसान का भाग्य भी इसी वजह से भिन्न भिन्न होता है.हालाकि ली ये भी बात कहा जाता है की एक ही शक्ल के सात इंसान इस दुनिया में मिलते हैं लेकिन उनमें भी पूरी समानता नहीं हो सकती.समान दिखने वाले बच्चो में भी कोई न कोई फर्क जरुर होता हैं.अगर यह सब हम जानते हैं तो यह क्युओं नहीं मान पाते हैं की हम सबसे अलग हैं. आप चाहे तो इसे अनूठा भी कह सकते हैं.

एक बार मैंने एक महापुरुष का कथन पढ़ा था.जिसका आशय कुछ यूँ था- अगर कोई दो लोग किसी चित्र को देख रहे हैं तो, उनका अवलोकन अथवा उनका परिचय भी एक सा नहीं होगा.जब नजर अलग तो नजरिया भी अलग ही होगा. ये जाहिर सी बात है.यह भिन्ता कोई रेखा नहीं है जो खांचे बनाती है.यह केवल एहसास कराने के लिए है की हर इंसान कुछ अलग कर सकता है.उसे किसी के पीछे चलने या नक़ल करने की जरुरत नहीं.ना ही इस इत्मीनान में बैठ जाना ही ठीक होगा की- और लोग कर तो रहे हैं.
हम क्या कर रहे हैं, यह अहम् है.क्या हमने इस पल का अपना कर्तव्य पूरा किया? क्या हम ने अपनी भूमिका निर्धारित कर ली है?इन दोनों प्रश्नों के बीच कई प्रश्नों का अंतर है, जो बीच में आयेंगे और हमें खाश पहचान तक ले जायेंगे. जो हमें इस दुनिया में अपने काम से परिचित करवाएंगे.
इन प्रश्नों के जरिये पड़ताल उन लोगों पर विशेष रूप से लागू होती है, जो इस जगत में अपनी भूमिका को लेकर खास संजीदा नहीं हैं. जिन्हें लगता है की यह जान पाना आसान नहीं की हम क्या करें? अगर गौर से विचार करें.और अपने जीवन को अहम् माने तो जान जायेंगे की हम सब यहाँ इस दुनिया को बेहतर बनाने आये हैं.ओ सारे काम इस दक्षता से करने आये है, ताकि इस गृह पर सदियों सदियों तक जीवन बना रहे.इंसान यूँ ही फलता-फूलता रहे.
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लेखिका:- रचना समंदर जी.