व्यवहार पर 40 अनमोल सुविचार Quotes Change Your Thinking
- किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे।
-सादी
- आपकी व्यावहारिकता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सामने वाले के विचारों को कितना महत्व देते हैं।
-भर्तृहरि
- अपने साथियों के साथ शत्रुओं जैसा व्यवहार करने का अर्थ होगा शत्रु के दृष्टिकोण को अपना लेना।
-माओ-त्से-तुंग
- अच्छे व्यवहार छोटे-छोटे त्याग से बनते हैं।
-इमर्सन
- अपने सम्मान, सत्य और मनुष्यता के लिए प्राण देने वाला वास्तविक विजेता होता है।
-हरि कृष्ण प्रेमी
- अपने को पारदर्शी बनाओ तो तुम्हारे अंतर्गत प्रकाशों का प्रकाश और परमात्मा का ज्ञान प्रकाशित होगा।
-स्वामी रामतीर्थ
- दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार कभी मत करो जैसा कि तुम दूसरों से पसंद नहीं करते।
-कंफ्यूशीयस
- अच्छे बनो, तो मैं गारण्टी करता हूं कि तुम अकेले रह जाओगे, अर्थात् तब कोई तुम्हारी बराबरी न कर सकेगा।
-महात्मा गांधी
- मेरा विश्वास है कि वास्तविक महान पुरुष की पहली पहचान उसकी नम्रता है।
-रस्किन
- असली शिक्षा अपने अंदर की सबसे अच्छी बातों को बाहर निकालना है। मनुष्यता से बढ़कर कोई अच्छी बात नहीं।
-महात्मा गांधी
- सदा सांत्वनापूर्ण मधुर वचन ही बोलें, कभी कठोर वचन नहीं बोलें। पूजनीय पुरुषों का सत्कार करें। दूसरों को दान दें किंतु स्वयं कभी किसी से कुछ न मांगें।
-महाभारत
- व्यवहार छोटा सदाचार है।
-पेव
- सदाचार का त्याग करके किसी ने अपना कल्याण नहीं किया।
-विष्णु पुराण
- सदाचार धर्म उत्पन्न करता है और धर्म से आयु बढ़ती है।
-वेदव्यास
- सदाचार की रक्षा सबसे पहले करनी चाहिए। क्योंकि धन तो आता जाता रहता है उसके न रहने पर सदाचारी कमजोर नहीं माना जाता, किन्तु जिसने सदाचार त्याग दिया, वह तो नष्ट ही होना है।
-विदुर नीति
- दूसरों के साथ वही व्यवहार करें जैसा आप अपने लिए चाहते हैं।
-अज्ञात
- पिता की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन जैसा धर्म दूसरा कोई भी नहीं है।
-वाल्मीकि
- भूल करना मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है और भूल-सुधार मानवता का परिचायक ।
-नचिकेता
- मिलने पर मित्र का सम्मान करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो, विपत्ति के समय सहयोग करो।
-अरस्तु
- मालिक से भी अधिक बुरा है लेनदार। चूंकि मालिक केवल तुम्हारे व्यक्तित्व पर अधिकार रखता है, लेकिन लेनदार तुम्हारी आबरू भी ले सकता है, और कभी भी तुम्हें तंग कर सकता है।
-विक्टर ह्यगो
- मुझे अपने संगी साथियों के बारे में बताएं, मैं बता दूंगा कि आप कौन हैं।
-गेटे
- मित्र का हृदय मजाक में भी नहीं दुखाना चाहिए।
-साइरस
- मूर्ख आदमी अनुमति के बिना आता है और अनुमति के बिना बोलने लगता है। वह बड़ा मूर्ख है जो ऐसे व्यक्ति पर विश्वास करता है।
-महाभारत
- एक व्यवहार बुद्धि सौ अव्यावहारिक बुद्धियों से अच्छी है।
-विष्णु शर्मा
- किसी मजबूर इंसान का मजाक उड़ाने का खयाल आए, तो उसके स्थान पर स्वयं को रख कर देखो।
-चाणक्य
- जिस मनुष्य का व्यवहार मधुर होता है, उसका कोई विरोध नहीं करता। जो किसी से द्वेष नहीं करता, उसे किसी प्रकार का भय नहीं होता। ऐसे मनुष्यों को अनेकों सुख स्वमेव मिलते रहते हैं।
-अर्थववेद
- जिसकी जेब में पैसा न हो, उसकी जुबान में शहद होना चाहिए।
-फ्रांसीसी लोकोक्ति
- जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे, उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। कपटपूर्ण आचरण करने वाले को वैसे ही आचरण द्वारा दबाना उचित है और सदाचारी को सद्व्यवहार के द्वारा ही अपनाना चाहिए।
-वेदव्यास
- न कोई किसी का मित्र है न शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते रहते हैं।
-नारायण पंडित
- सांप के काटने से तो अक्सर लोग मर जाते हैं। कई बार तो तब लोगों को मरते देखा है जबकि सर्प विषैला नहीं होता। लेकिन कुछ लोग विषैले सांपों को पकड़ते हैं, और उनका प्रदर्शन कर धन कमाते हैं। इस श्रेणी के लोगों को व्यवहारकुशल कहा जा सकता है।
-स्वामी गोविन्द प्रकाश
- जो मिट्टी से भी सोना बनाते हैं, वही व्यवहारकुशल हैं।
-डिजरायली
- महान पुरुषों की महानता देखना चाहते हो तो उनके द्वारा उस व्यवहार में देखो जो वह छोटे मनुष्यों के साथ करते हैं।
-कार्लाइल
- अगर लोग तुझे मुक्के मारते हैं तो बदले में उन्हें न मार, बल्कि उनके पैरों को चूम कर अपने घर आ जा
-शेख फरीद
- आपका व्यवहार कसौटी है इस बात की कि आप असल में क्या हैं ।
-वेदान्त तीर्थ
- व्यवहार की व्याख्या करना उतनी आसान नहीं, जितना लोग समझते हैं। व्यवहार की सच्चाई वह नहीं जो दिखाई देती है। व्यक्ति कोई विशिष्ट व्यवहार क्यों करता है, यह वह भी नहीं जानता। यही वजह है कि व्यवहार पर उसका बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं होता, और वह कहता है ऐसा कैसे हो गया।
-फ्रायड
- व्यवहार जो जितना सहज होगा, समझना वह उतना ही महान है।
-ओशो
- व्यवहार के परिष्कार का ही दूसरा नाम अध्यात्म है। जबकि धर्म इन दोनों के बीच की जरूरी कड़ी है।
-स्वामी गोविन्द प्रकाश
- व्यवहार कुशल होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि आप दूसरों से गलत को सच मनवाने में कितने माहिर हैं। बल्कि इसका अर्थ है कि आप सच की कड़वी दवा को कैसी खूबसूरती से पेश करें, ताकि दूसरा व्यक्ति उसे बिना मुंह बिचकाए स्वयं मुस्कराता हुआ पी जाए।
-स्वामी अमरमुनि
- व्यवहार का सच सत्य की प्रतीति है इसलिए वह देखते-देखते स्वयं झूठा सिद्ध होता है, जबकि पारमार्थिक सत्य अपने सौन्दर्य की महक सदैव बिखेरता रहता है।
-आद्य शंकराचार्य
- भौतिक स्तर पर प्राप्त होनेवाली संवेदना और उसके प्रति की जानेवाली प्रतिक्रिया से मिलकर बनता है व्यवहार । इस प्रकार आध्यात्मिक अनुभूतियों को प्राप्त करनेवाला शरीरी व्यवहार की किसी भी प्रकार से उपेक्षा नहीं कर सकता। यही कारण है कि जिसका अध्यात्म सध गया, उसका व्यवहार भी कुशलतापूर्वक होता है। योग का अर्थ कर्मों में कुशलता करते हुए श्रीकृष्ण ने व्यवहार की सत्यता को ही स्वीकार किया है।
-के. हैरी
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