योगासन करते समय जरुर बरतें सावधानी:-
आसन करते समय शरीर के साथ किसी प्रकार जोर-जबरदस्ती नही करनी चाहिए। योगाभ्यास में आसन और ध्यान की क्रिया साथ-साथ चलती है। आसनों का अभ्यास इसके प्रारम्भिक चरण में ही करना होता है। बाद में साधक-साधिका इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें इनके ‘निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता नहीं रहती तथा धीरे-धीरे ही पूर्ण लाभ मिलने लगता है। योगासन में आसनों की संख्या बहुत अधिक है। हम रोजाना आपके लिए एक आसन के बारें में बताएँगे। ऐसे ही और हिंदी लेखों को पढ़ने के लिए आप “अनमोलसोच डॉट इन” के टेलीग्राम चैनल से जुड़ सकते हैं या Bell Notification को ऑन कर लें ताकि सभी लेखों की जानकारी आपको समय पर मिलता रहे। Sukhasana | Shwasana
सुखासन- सामान्य भाषा में इसे पालथी मारकर बैठना भी कह सकते हैं। इस आसन में आसानी से, शरीर को थकाये बिना, दो तीन घण्टे तक बैठ सकते हैं। इस आसन में आपको कोई भी तकलीफ नहीं होती है और आप इस आसान को बहुत ही आराम से कर सकते हैं।
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सुखासन करने की सही विधि- सुखासन एक सरल आसन है। इस मुद्रा में हम दैनिक जीवन में अक्सर बैठते हैं, किन्तु हम उसे सुखासन नहीं कह सकते। कारण यह है कि हम मुद्रा तो वह बना लेते है।, किन्तु इसके नियमों का सूक्ष्मता से पालन नहीं करते। सुखासन के लिए एक दरी या कम्बल भूमि पर बिछाएँ । घुटनों को मोड़ कर पालथी मारकर बैठ जाएँ। हाथों को आगे स्वाभाविक रूप से ढीला छोड़ दें। हाथ घुटनों पर भी रखा जा सकता है, पर वह ढीला हो । कमर, पीठ, रीढ़, गर्दन सीधी रखें। अपनी पेशियों पर कोई दबाव न दें। जैसे आराम मिलता हो, बैठें।
सुखासन की कई मुद्राएं हो सकती है। कोई भी ऐसी मुद्रा जिससे आपको बैठने से आराम मिलता हो, सुखासन है । शर्त केवल यह है कि पेशियों को ढीला छोड़ दें और पीठ, कमर, गर्दन आदि को सीधा रखें सुखासन में ध्यान-सुखासन में वे सभी ध्यान क्रियाएँ की जा सकती है, जो पद्मासन में की जाती है। त्राटक के अभ्यास के लिए प्रारम्भ में इसी आसन का प्रयोग उचित है।
सुखासन के लाभ- बैठकर करने वाले किसी कार्य के लिय यही आसन उपयुक्त है। इसमें बैठने से थकावट नहीं होता मेरुदंड सीधा होता है। कमर, मेरु आदि में लचीलापन आता है।
सुखासन करते समय सावधानियाँ– उत्तर दिशा की ओर मुँह करके न बैठें। पेशियों को ढीला रखें। कमर, पीठ, रीढ़, गर्दन को सीधा रखें। सुखासन में ‘ध्यान’ लगाते समय पहले मस्तिष्क को भी स्वतन्त्र छोड़ दें, ताकि विचारों की धारा का शमन हो सके ।
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आइये इसी लेख में एक और आसन के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें, इस आसन के भी बहुत फ़ायदे हैं। इस आसान का नाम शवासन है।
शवासन:- इस आसन में शरीर की स्थिति मुर्दे की समान होती है। जब आपका शरीर और मन पूरी तरह थक गया हों, आपको कुछ काम करने की इच्छा न हो, किसी से बात करने का मन न हो, आप निराश अथवा परेशान हों, तो आप इस आसन का आश्रय लीजिये और सही ढंग से इसे कीजिये। आपकी परेशानियाँ दूर हो जायेंगी और आपका शरीर फिर से पहले की तरह हलका और तरोताजा हो उठेगा। अंग-अंग ढीला छोड़कर शरीर और मस्तिष्क को इसमें पूर्णत: विश्राम की स्थिति में लाया जाता है। विधि निचे दिया गया है।
शवासन करने की विधि- भूमि पर दरी या कम्बल बिछा कर पीठ के बल चित्त लेट जाइए। दोनों पैर फैले हुए हों और उनमें एक फीट की दूरी हो। पैर ढीला छोड़ने पर जिधर लुढ़कते हैं, लुढ़कने दीजिए। बाहों को दोनों बगल में। शरीर से थोड़ा हटाकर फैलाएँ और हाथों को ढीला छोड़ दें। हथेली ऊपर की ओर हों और उँगलियाँ ढीली छोड़ने पर जैसे रहें, वैसे ही रहने दीजिए। इसके बाद स्वाभाविक गति से साँस लेते रहिए। आँखें बन्द करके ढीली छोड़ दीजिये।
शवासन में ध्यान- शवासन की अवस्था में मस्तिष्क के विचारों को शान्त करने का प्रयत्न करें। किसी प्रफुल्लित करने वाली वस्तु पर चेतना को एकाग्रचित्त करें, जिसमें काम सम्बन्धी कोई भाव नहीं हो। इस आसन में ‘ध्यान’ लगाने से एक समय ऐसा आयेगा, जब शरीर हल्का-फुल्का लगेगा और चेतना उन्मुक्त सी लगेगी।
शवासन के लाभ- यह शरीर को पूर्णतया विश्राम प्रदान करता है। इससे थकावट दूर होती है। मानसिक तनाव दूर होता है। मन-मस्तिष्क हल्का एवं प्रफुल्लित होता है।
शवासन को करने में सावधानियाँ- शवासन मे ध्यान लगाते समय शरीर और मस्तिष्क पर कोई भी दबाव न डालें। ‘ध्यान’ में भी स्वाभाविक रूप से एकाग्रचित्तता को प्राप्त करने का प्रयत्न करें। उत्तर दिशा की ओर सिर करके श्वासन न लगाएँ। अच्छा हो कि सिर पूरब दिशा में रखें। शवासन करवट लेटकर भी किया जा सकता है, लेकिन सबसे लाभप्रद चित्त लेटना ही है।
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